आज दीवाली को संपूर्ण सिलीगुड़ी शहर में केले की हरियाली नजर आ रही है. चारों तरफ केले के हरे हरे पत्ते और अशोक की हरी हरी पत्तियां नजर आ रही हैं. जहां तक जलपाई मोड़ की बात है,आज का दिन जलपाई मोड़ केला मोड़ के रूप में कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.क्योंकि आज जलपाई मोड़ पर सबसे ज्यादा केले की ही बिक्री हो रही है. एक केले का पेड़ ₹200 से लेकर ₹300 तक बिक रहा है और लोग खरीद भी रहे हैं.
जलपाईगुड़ी से लेकर दूर-दूर के क्षेत्रों से जलपाई मोड में केले के वृक्ष रात में ही दुकानदार लगा गए थे और आज सुबह से ही खरीददारों की भीड़ नजर आ रही है. ट्रैफिक पॉइंट से लेकर जलपाई मोड़ बाजार तक केले के हरे हरे वृक्ष नजर आएंगे. चारों तरफ चहल पहल है. इस चहल पहल में केले की आत्मा जरूर रो रही होगी. एनजीटी महानंदा नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठा रही है. पर्यावरणविद् स्वच्छता और स्वच्छ वायु की बात करते हैं. सरकार दीवाली पर पटाखे नहीं चलाने की बात कर रही है, क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.
आज वे लोग क्यों चुप हैं जब उनकी आंखों के सामने स्वच्छ पर्यावरण के कारक के रूप में केले के वृक्ष काटे जा रहे हैं. लेकिन इस पर प्रशासन की कोई नजर नहीं है और ना ही कोई पर्यावरणविद आगे आ रहा है. सिलीगुड़ी प्रशासन को इससे कोई लेना-देना नहीं है. उसे तो बहुमत चाहिए और बहुमत सिलीगुड़ी के लोगों के साथ रहने से आएगा, इसलिए प्रशासन चुप है. सिलीगुड़ी के लोग इसलिए मस्त हैं कि केले के वृक्षों से अपने घर के दरवाजे की शोभा बढ़ाएंगे ताकि शाम को लक्ष्मी जी उनके घर में पधार सकें. पर जरा सोचिए, क्या केले की कुर्बानी देकर, क्या पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर लक्ष्मी जी की आरती उतारना अच्छी बात है?