केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लाख दावा कर रहे हैं कि इस बार पश्चिम बंगाल में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न होगा, चुनाव आयोग भले ही राज्य में निष्पक्ष तथा शांतिपूर्ण चुनाव की योजना बनाने में लगा हो, और इसके लिए चुनाव की घोषणा से पहले ही राज्य में केंद्रीय बलों की कई कंपनियां मंगा ली गई हो, केंद्रीय बलों ने यहां रूट मार्च शुरू भी कर दिया हो, पर जिस तरह की बयानबाजी सामने आ रही है, उससे लगता नहीं है कि 2021 का विधानसभा चुनाव निष्पक्ष व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने जा रहा है.
भाजपा और तृणमूल कांग्रेस राज्य की मुख्य दो शक्तियां हैं. भाजपा सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई लड़ रही है तो उधर तृणमूल कांग्रेस किसी भी सूरत में भाजपा को आने देना नहीं चाह रही है. स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी चुनाव सभाओं में कह चुकी हैं कि भाजपा उनके जीते जी बंगाल में कभी नहीं आएगी. राजनीतिक विश्लेषक इसको दूसरे अर्थों में ले रहे हैं और आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में चुनाव शांतिपूर्ण नहीं हो सकता.
मतदाता को अपनी पसंद के दल और उम्मीदवार को मतदान करने का अधिकार होता है. लेकिन अगर मतदाता को बूथ तक पहुंचने ही नहीं दिया जाए तो कैसा मतदान… कैसा चुनाव… कैसा लोकतंत्र! इन दिनों दक्षिण 24 परगना की भानगढ़ भोगाली दो नंबर पंचायत प्रधान मुदस्सर हुसैन का बयान सुर्खियों में है. हुसैन तृणमूल कांग्रेस के पंचायत प्रधान हैं. उन्होंने एक सभा में बयान दिया था कि उनके इलाके में 14000 नए वोटर बने हैं. उन सभी मतदाताओं को तृणमूल को ही वोट करना होगा, अन्यथा वे बूथ पर नहीं जा पाएंगे. हुसैन ने धमकी भरे लहजे में कहा है कि मतदान केंद्रों के अंदर केंद्रीय बलों के जवान तैनात रहेंगे, जबकि तृणमूल कांग्रेस के लोग मैदान में घूमेंगे. जो तृणमूल कांग्रेस को वोट देगा, वही बूथ में जा पाएगा.
तृणमूल नेता के इस बयान के बाद चुनाव लड़ रही विभिन्न पार्टियों में हड़कंप मच गया है और वे आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि चुनाव आयोग क्या मतदाताओं के मतदान का अधिकार सुरक्षित कर पाएगा? इस बीच राज्य के विभिन्न शहरों और कस्बों में अर्धसैनिक बलों ने पहुंचकर रूट मार्च शुरू कर दिया है. केंद्र से और भी कई कंपनियां राज्य में आ रही हैं. चुनाव आयोग इन के जरिए मतदाताओं को शांतिपूर्ण मतदान का आइना दिखा रहा है. पर मतदाता डरे हुए हैं. खासकर उन इलाकों में जहां इस तरह की बयानबाजी सामने आ रही हो. नक्सल प्रभावित बीरभूम जिले में अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों की तैनाती कर दी गई है. इसके अलावा हावड़ा, साल्ट लेक तथा अन्य जिलों में भी अर्ध सैनिक बल रूट मार्च कर रहे हैं. पर मतदाताओं की चिंता साफ झलकती है. क्या वे मतदान केंद्रों पर पहुंचकर अपने मत का अधिकार का प्रयोग कर सकेंगे… क्या वे अपनी पसंद के उम्मीदवार तथा दल को वोट देने में कामयाब हो सकेंगे… इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है…