प्रमोद मिश्रा / सिलीगुड़ी : 23 मई को आए लोकसभा चुनाव के परिणाम ने पूरे देश को चौंका दिया। साथ ही पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम बेहद ही आश्चर्यजनक रहे हैं। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल से 22 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसमें से भाजपा 18 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल हो पाई भाजपा की यह जीत पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी का संकेत है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा 2014 के चुनाव में केवल 2 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी, जिसमें दार्जिलिंग व आसनसोल लोकसभा की सीटें शामिल थी। परंतु वर्तमान में उत्तर प्रदेश में संभावित नुकसान का अंदेशा देखते हुए भाजपा की ओर से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल से इसकी भरपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें भाजपा के चाणक्य व हजारों कार्यकर्ताओं की मेहनत सफल हुई है।
इसी के मद्देनजर खतरे की घंटी कहने का तात्पर्य यह है कि भाषा के रूप से उत्तर भारतीय पार्टी माने जाने वाली भाजपा ने दो अलग भाषाई राज्य उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में लंबी छलांग लगाते हुए सत्ताधारी दल को काफी पीछे धकेला है। भले ही उड़ीसा के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उतनी सफलता न मिली हो लेकिन वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है । जैसा कि कल अपने संबोधन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 6 बार बंगाल का उल्लेख करते हुए कहा था कि यह तुष्टीकरण की राजनीति की वजह से यह परिणाम देखने को मिला है।
18 सीटों पर जीत भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्साह को और ऊंचाइयों पर ले जाएंगे और भाजपा कार्यकर्ता 2021 में विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल को बेदखल करने के लिए और मेहनत करेंगे और ऐसा हुआ तो तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है।