सिलीगुड़ी के विवेकानंद रोड पर स्थित सेक्स वर्कर्स का बसेरा है. यहां कई छोटी-छोटी गलियां हैं और इन गलियों में छोटे-छोटे मकान बने हैं. इन्हीं दरबेनुमा मकानों में काफी संख्या में सेक्स वर्कर्स रहती हैं. यहां दिन में तो उतनी चहल पहल नहीं रहती, लेकिन शाम होते ही यह इलाका रौशन हो उठता है.सजी-धजी सेक्स वर्कर्स ग्राहकों के इंतजार में सड़क के किनारे खड़ी रहती हैं. यहां कम उम्र से लेकर ज्यादा उम्र की लड़कियां और धंधेबाज औरतें मिल जाएंगी. इनकी कुल मिलाकर पहचान सिर्फ यही है कि यह धंधेबाज औरतें हैं. इसके अलावा यह सेक्स वर्कर अपने बारे में किसी को कुछ नहीं बताती.
यह भी नहीं कि वह कहां की है और कैसे इस धंधे में आई.बस यही है उनकी जिंदगी.एक बार जो इस कोठे पर आता है उसके बाहर जाने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं.यहां लाई गई कुछ सेक्स वर्कर धोखे की शिकार हुई हैं तो कुछ लड़कियां सपनों की रंगीन दुनिया में खो कर यहां पहुंचा दी गई हैं. कुछ लड़कियां या महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी मर्जी से धंधा करती हैं. इस धंधे की यह खासियत है कि यहां लड़कियां अपनी पहचान नहीं बताती. ग्राहकों के लिए यह लड़कियां एक धंधेबाज हैं. वैसे भी ग्राहकों को लड़कियों की जाति अथवा उनकी पृष्ठभूमि जानने की कोई इच्छा नहीं होती. लेकिन सच्चाई तो यह है कि यहां हर सेक्स वर्कर की अपनी एक कहानी है. यह कहानी जज्बातों की लड़ियों से शुरू होकर उनकी तबाही की मंजिल पर आकर समाप्त होती है. शायद यही कारण है कि अब इन सेक्स वर्कर के जज्बात मर गए हैं.
विवेकानंद मार्ग के इस इलाके में कई कहानियां एकदम फिल्मी सी है. जब जब यहां पुलिस का रेड पड़ता है तब तब कोई ना कोई नई कहानी सामने आती है. यहां की सेक्स वर्करों से बातचीत करने से ऐसा लगता है कि वह भी एक आम आदमी की जिंदगी जीना चाहती हैं. वह भी चाहती हैं कि उनका एक परिवार हो. समाज में उनका सम्मान हो. लोग उन्हें अछूत ना समझे. आज उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने बिना सोचे विचारे किसी पर भरोसा किया या फिर अभिभावकों को अंधेरे में रखा…आज उन्हें अपने फैसले पर पछतावा होता है.आज उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने घरवालों के मार्गदर्शन में काम किया होता तो शायद आज उनकी जिंदगी तबाह नहीं होती.
आज इन धंधेबाज समय की सताई लड़कियों को एहसास हो रहा है कि समय की मार और असुरक्षा की भावना ने उन्हें इस पेशे में ऐसा धकेला है कि यहां से बाहर जाने की कल्पना मात्र से ही उनके पसीने छूटने लगते हैं. क्या कहेगा समाज और वह समाज का सामना कैसे कर सकेंगी. इन सारे सवालों को सोच सोच कर ही उनकी हिम्मत पस्त हो जाती है. यह तो रही कुछ ऐसी सेक्स वर्कर्स की, जो स्वतंत्र होकर देहव्यापार करती हैं. लेकिन जो सेक्स वर्कर्स कोठे की संरक्षिका अथवा बाइ के हाथों बेच दी गई होती हैं, उन पर कोठा संचालिका के गुर्गों की कड़ी नजर रहती है. ऐसी लड़कियों को तब तक बाहर नहीं निकाला जाता जब तक कि वह इस पेशे की अभ्यस्त नहीं हो जाती. यहां आई अधिकांश सेक्स वर्कर गरीब घरों से जुड़ी हैं और दूरदराज के क्षेत्रों से लाई गई होती हैं. गरीबी के कारण घरवाले ऐसी लड़कियों का या तो पता नहीं लगा पाते या फिर लड़कियों को बोझ समझकर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं.
यह भी जानकारी मिली है कि कई गरीब परिवार लड़कियों को दलालों के हाथों बेच देते हैं. मजबूरी में ऐसी लड़कियों को जलालत की जिंदगी जीनी होती है. यहां कई लड़कियां प्रेम के धोखे की भेंट चढ़ कर लाई गई होती हैं. एक बार यहां आने पर वहां से जाने के उन के रास्ते बंद हो जाते हैं. हर लड़की की यहां अलग अलग कहानी है.पर एक बार इस कोठे पर आने के बाद उनकी जिंदगी जहन्नुम हो जाती है.कुछ लड़कियों की किस्मत अच्छी होती है जिन्हें समय रहते इस नारकीय जिंदगी से मुक्ति मिल जाती है.पर अधिकांश सेक्स वर्कर गुमनाम जिंदगी जीते हुए गुमनामी में ही मर जाती हैं. यहां की सेक्स वर्कर के स्वास्थ्य तथा बुनियादी जरूरतों को लेकर हालांकि प्रशासन सजग रहता है. इसके बावजूद एक आम नागरिक की जिंदगी जी नहीं सकने का दर्द ताउम्र उनके होठों पर बना रहता है. सेक्स वर्करों को अच्छी जिंदगी देने के लिए पूर्व में कई सामाजिक संगठनों ने प्रयास किए हैं. आज भी संगठनों के द्वारा उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है. पर इन सबके बावजूद उनका अनकहा दर्द छलक ही आता है. क्या हमारा समाज उन्हें स्वीकार कर सकेगा?