सिलीगुड़ी तथा आसपास के इलाकों में बालू पत्थर नहीं मिलने से इंफ्रास्ट्रक्चर के काम या तो रुके हुए हैं या फिर उनके काम हो रहे हैं जिन लोगों ने पहले से ही बालू पत्थर मंगवा कर स्टोर किया हुआ है. जब बालू पत्थर नहीं होगा तो बड़ी बड़ी बिल्डिंग या भवन का काम कैसे होगा. वर्तमान में सिलीगुड़ी तथा आसपास के इलाकों में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट के काम हो रहे हैं. बालू पत्थर के अभाव में जल्द ही इन्हें बंद करना पड़ सकता है.
अगर इंफ्रास्ट्रक्चर की बात भी ना करें तो महानंदा अथवा सहायक नदियों से बालू पत्थर उत्खनन करने वाले हजारों लोगों की रोजी-रोटी भी प्रभावित हो रही है, जो इसी काम से चलती थी. इस समय सिलीगुड़ी तथा आसपास की किसी भी नदी में जाकर देखें तो बालू पत्थर उत्खनन का कार्य रुका हुआ है. इसके साथ ही इस कार्य में लगे लोग और ट्रकों की लंबी लाइन भी नजर नहीं आएगी. नदी सुनसान पड़ी है. कुछ समय पहले महानंदा तथा सहायक विभिन्न नदियों में बालू पत्थर उत्खनन का कार्य दिन-रात चलता था और ट्रकों के जरिए माल एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता था. मालवाहक ट्रक रात दिन सिलीगुड़ी की सड़कों पर बालू पत्थर लेकर एक कोने से दूसरे कोने जाते रहते थे. फिलहाल सर्वत्र सन्नाटा व्याप्त है.
इस कार्य में लगे लोग या तो घर पर बैठे हैं अथवा दूसरे कार्य करके अपना पेट पाल रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश के बाद जिला प्रशासन ने नदियों से गैरकानूनी खनन को बंद कर दिया है परंतु इसके साथ ही रॉयल्टी देकर बालू पत्थर उठाने वाले लोग भी इस कार्य से दूर हो गए हैं.प्रशासन सख्त है. नदी में एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता. कई दिनों से बालू पत्थर उत्खनन का कार्य रुका हुआ है. जो लोग वैधानिक तरीके से इस कार्य में लगे हुए थे,ऐसे लोग भी इससे दूर हैं. उनके सामने बेरोजगारी और भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है. यही कारण है कि बीते दिन माटीगाड़ा ट्रक ओनर एसोसिएशन के सदस्यों ने माटी गाड़ा थाना के सामने प्रदर्शन किया और थाना प्रभारी को अपनी स्थिति से अवगत कराया.
माटीगाड़ा ट्रक ओनर्स एसोसिएशन ने कुछ बातों को उठाया है जिसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है. उनका कहना है कि जो लोग अवैध तरीके से नदियों से बालू पत्थर निकालने का काम करते थे, उन्हें तो रोका ही जाना चाहिए परंतु जो लोग कानूनी तरीके से रॉयल्टी के साथ काम करते थे, उन्हें प्रशासन काम करने क्यों नहीं दे रहा है. पुलिस प्रशासन का कहना है कि नदियों से बालू पत्थर निकालने से नदी का गर्भ खोखला हो रहा है. यह भी ठीक है कि नदी से बालू पत्थर निकालने से नदी का गर्भ खोखला होता जाता है. परंतु यह भी सच है कि अगर नदी से बालू पत्थर नहीं निकाला जाएगा तो इंफ्रास्ट्रक्चर का काम कैसे होगा. क्योंकि बालू पत्थर नहीं होने से बिल्डिंग अथवा भवन का काम नहीं हो सकता.
पुलिस प्रशासन और सरकार को इस दिशा में भी गौर करने की जरूरत है. ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूर होनी चाहिए जो अवैधानिक तरीके से उत्खनन का कार्य कर रहे हैं. परंतु जो लोग वैधानिक तरीके से और सरकार को राजस्व देकर इस कार्य में लगे हैं उन्हें रोकना भी ठीक नहीं है. इससे उनके समक्ष भुखमरी और बेरोजगारी की समस्या काफी बढ़ सकती है. आमतौर पर एक मालवाहक ट्रक के ऊपर 20 से 25 लोगों का परिवार चलता है. ट्रक के बंद होने का मतलब यह है कि 20 से 25 लोगों की रोजी रोटी छीन जाना.
नदियों से बालू उत्खनन का कार्य रोके जाने का यह कोई पहला मामला नहीं है.इससे पहले कोरोना काल में भी सरकार और प्रशासन ने इसे रोका था. कई महीनों तक इस कार्य में लगे लोगों के समक्ष विकट स्थिति उत्पन्न हो गई थी. क्योंकि दूसरा कार्य नहीं मिलने तथा इसी पर आश्रित होने के कारण अनेक परिवारों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी.एक बार फिर से कमोबेश यही स्थिति बनती जा रही है अथवा बन सकती है. ऐसे में सरकार और प्रशासन को एक मध्यम मार्ग वाली नीति अपनाने की जरूरत है ताकि नदी भी सुरक्षित रहे और बालू पत्थर के उत्खनन कार्य में लगे लोगों की रोजी रोटी भी चलती रहे.