आज सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. 152 वर्षों में पहली बार देशद्रोह कानून के प्रोविजंस को सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया है. देशद्रोह की संवैधानिकता पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना ,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून की समीक्षा होने तक किसी के खिलाफ एफ आई आर नहीं होना चाहिए.यहां तक कि इस कानून के तहत गिरफ्तार मौजूदा आरोपी भी जमानत के लिए अर्जी दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कन्हैया जैसे 13000 लोग राहत की सांस ले रहे होंगे, जिन पर देशद्रोह कानून लगाया गया है.
इस समय केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट देशद्रोह कानून को लेकर काफी सख्त हैं. ब्रिटिश युग से चले आ रहे इस कानून को समाप्त करने की बात की जा रही है. परंतु देशद्रोह कानून को समाप्त करना इतना आसान भी नहीं है. ना तो केंद्र सरकार और ना ही सुप्रीम कोर्ट जल्दबाजी में कोई फैसला करना चाहते हैं. सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता के अनुसार देश की एकता और अखंडता को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करना चाहती है. परंतु इससे दंड का प्रावधान नहीं हटाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से राज्य सरकारों को यह निर्देश जारी करने पर विचार करने के लिए कहा था कि जब तक कि प्रावधान की समीक्षा की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती, तब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के देशद्रोह के प्रावधान के संचालन को स्थगित रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसके लिए जो समय दिया था, वह आज पूरा हो गया. देश का कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहेगा कि देश के खिलाफ काम करने वाले को दंड न दिया जाए. परंतु देश यह भी नहीं चाहेगा कि देशद्रोह कानून का दुरुपयोग हो तथा निर्दोष को इस कानून के दायरे में लाकर उसका जीवन बर्बाद किया जाए.
हमारे देश में देशद्रोह कानून का दुरुपयोग किस तरह से हो रहा है, यह इसी बात से पता चल जाता है कि हनुमान चालीसा पढ़ने पर महाराष्ट्र की पुलिस ने देशद्रोह कानून लगा दिया. अटार्नी जनरल ने यह बात स्वयं कही थी कि हनुमान चालीसा पढ़ने पर देशद्रोह कानून लगाया जा रहा है. क्या देशद्रोह कानून का यह दुरुपयोग नहीं है?
आजाद देश में प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है. कोई भी व्यक्ति सरकार की गलत नीतियों की आलोचना कर सकता है परंतु इसके लिए व्यक्ति को देशद्रोह कानून के दायरे में लाया जाए तथा इस कानून की धाराओं के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी हो तो इस पर चिंता होना स्वाभाविक है. इस तरह के अनेक मामले सामने आए हैं जब देशद्रोह कानून का दुरुपयोग किया गया है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून की धारा 124 ए के प्रावधानों पर विचार और जांच करने की बात कही थी.
केंद्र द्वारा अदालत में दाखिल हलफनामे में कोर्ट से अपील की गई थी कि इस मामले पर सुनवाई तब तक ना की जाए जब तक सरकार जांच ना कर ले. बेहतर तो यह होता कि देशद्रोह कानून के सभी पहलुओं तथा उसकी बारीकियों पर संसद में बहस होती. उसके बाद ही इस पर एक आम सहमति बनाई जाती. जिस तरह से आवश्यकता होने पर संविधान में संशोधन होता है, ठीक उसी तरह से ब्रिटिश युग के इस कानून की खामियों की समीक्षा और उसका सही सदुपयोग पर बात हो तभी इस कानून की मर्यादा बनी रहेगी. देशद्रोह कानून ने अंग्रेजी राज में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार भगत सिंह ,सुभाष चंद्र बोस और ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानी नेताओं की अभिव्यक्ति पर कुठाराघात किया था तथा उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया था. महात्मा गांधी ने देशद्रोह कानून को सरकार के विरोध को शांत करने का सबसे शक्तिशाली हथियार बताया था.
सुप्रीम कोर्ट के पास एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया तथा दूसरी संस्थाओं अथवा व्यक्तियों द्वारा इस कानून के संदर्भ में याचिकाएं दायर की गई है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिकाओं में धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. निश्चित रूप से ऐसे कानून और दंड के प्रावधान पर विचार-विमर्श और आम सहमति हो. उसके बाद ही इस कानून को संचालित करने अथवा लागू करने की बात होनी चाहिए. परंतु किसी भी तरह देशद्रोह कानून को खत्म करने की बात नहीं होनी चाहिए. आज सुप्रीम कोर्ट ने देश की भावनाओं को समझा है और एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जहां इस कानून की समीक्षा की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय है. जब तक इस कानून की समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक इसे स्थगित रखना ही उचित कदम है.