कल्पना और तिलिस्म की दुनिया में विचरण करने वाले कथा साहित्य को यथार्थ की भावभूमि प्रदान करने वाले कथाकार प्रेमचंद की 141 जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम साहित्यिक संस्था की ओर से गूगल मीट, फेसबुक एवं यूट्यूब के माध्यम से प्रो. डॉ. मुक्तेश्वर नाथ तिवारी, हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष, भाषा एवं साहित्य, विश्वभारती की अध्यक्षता एवं डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री श्रद्धा तिवारी के उद्घाटन नृत्य से हुआ।
प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिवान ने वेबिनार का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रेमचंद के विचार एवं साहित्य के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद को किसी वाद या सिद्धांतों के आधार पर नहीं देखा जा सकता। वे राष्ट्र की स्वाधीनता और समाज की स्वाधीनता के साथ व्यक्ति की स्वाधीनता के पक्षधर थे। जिन्दगी और परिस्थितियों के बीच मनुष्य के संघर्ष को देख रहे थे। प्रेमचंद के कथा साहित्य में दलित विमर्श पर प्रो.डॉ. चमन लाल, पूर्व विभागाध्यक्ष, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू, दिल्ली ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद दलितों एवं पीड़ितों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपने सृजनात्मक एवं रचनात्मक लेखन में उनके पक्ष में लिखा है।
पत्रकार प्रेमचंद वर्तमान संदर्भ में विषय पर प्रो. डॉ. व्यासमणि त्रिपाठी, हिन्दी विभागाध्यक्ष, जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय, पोर्ट ब्लेयर, अंडमान ने अपने बहुमूल्य विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद की पत्रकारिता पर गाँधीवाद का प्रभाव है। वे संवेदना, रचना, संघर्ष और मनुष्यत्व के विकास के पत्रकार थे। भारतीय परम्परा में गोदान एवं उपन्यास गोदान में जीवन संघर्ष विषय पर डॉ. शिव प्रसाद शुक्ल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद ने अपना विचार रखा, लेकिन नेट में गड़बड़ी आ जाने के कारण वे पूरी तरह से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाये। ओमान से डॉ. अशोक कुमार तिवारी ने अपने विचार रखते हुए बताया कि ओमान जैसे देश में भी प्रेमचंद काफी लोकप्रिय हैं। प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, चीन ने बताया कि चीनी भाषा में प्रेमचंद पर बहुत अधिक शोध कार्य हुए हैं और अभी भी जारी है। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. डॉ. मुक्तेश्वर नाथ तिवारी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद का सहित्य जागरण का साहित्य है। उनकी हर विधा हमें सार्वत्रिक जागरण का संदेश देती है।
अंत में असासं के अध्यक्ष श्री देवेन्द्र नाथ शुक्ल ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्था की ओर से आभार व्यक्त किया। संगीत शिक्षक श्री दीपक कुमार, सिवान ने कार्यक्रम के मध्य एवं समापन के समय प्रेमचंद साहित्य पर आधारित गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया। कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यूट्यूब एवं फेसबुक पर इसका सीधा प्रसारण हो रहा था और देश-विदेश में अपने घरों में बैठे लोग प्रेमचंद के विचारों को सुन रहे थे और देख रहे थे। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में देश के विभिन्न राज्यों एवं शहरों के व्यक्तियों एवं संस्थाओं ने अपना सक्रिय योगदान दिया।
कल्पना और तिलिस्म की दुनिया में विचरण करने वाले कथा साहित्य को यथार्थ की भावभूमि प्रदान करने वाले कथाकार प्रेमचंद की 141 जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम साहित्यिक संस्था की ओर से गूगल मीट, फेसबुक एवं यूट्यूब के माध्यम से प्रो. डॉ. मुक्तेश्वर नाथ तिवारी, हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष, भाषा एवं साहित्य, विश्वभारती की अध्यक्षता एवं डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री श्रद्धा तिवारी के उद्घाटन नृत्य से हुआ।
प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिवान ने वेबिनार का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रेमचंद के विचार एवं साहित्य के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद को किसी वाद या सिद्धांतों के आधार पर नहीं देखा जा सकता। वे राष्ट्र की स्वाधीनता और समाज की स्वाधीनता के साथ व्यक्ति की स्वाधीनता के पक्षधर थे। जिन्दगी और परिस्थितियों के बीच मनुष्य के संघर्ष को देख रहे थे। प्रेमचंद के कथा साहित्य में दलित विमर्श पर प्रो.डॉ. चमन लाल, पूर्व विभागाध्यक्ष, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू, दिल्ली ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद दलितों एवं पीड़ितों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपने सृजनात्मक एवं रचनात्मक लेखन में उनके पक्ष में लिखा है।
पत्रकार प्रेमचंद वर्तमान संदर्भ में विषय पर प्रो. डॉ. व्यासमणि त्रिपाठी, हिन्दी विभागाध्यक्ष, जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय, पोर्ट ब्लेयर, अंडमान ने अपने बहुमूल्य विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद की पत्रकारिता पर गाँधीवाद का प्रभाव है। वे संवेदना, रचना, संघर्ष और मनुष्यत्व के विकास के पत्रकार थे। भारतीय परम्परा में गोदान एवं उपन्यास गोदान में जीवन संघर्ष विषय पर डॉ. शिव प्रसाद शुक्ल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद ने अपना विचार रखा, लेकिन नेट में गड़बड़ी आ जाने के कारण वे पूरी तरह से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाये। ओमान से डॉ. अशोक कुमार तिवारी ने अपने विचार रखते हुए बताया कि ओमान जैसे देश में भी प्रेमचंद काफी लोकप्रिय हैं। प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, चीन ने बताया कि चीनी भाषा में प्रेमचंद पर बहुत अधिक शोध कार्य हुए हैं और अभी भी जारी है। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. डॉ. मुक्तेश्वर नाथ तिवारी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद का सहित्य जागरण का साहित्य है। उनकी हर विधा हमें सार्वत्रिक जागरण का संदेश देती है।
अंत में असासं के अध्यक्ष श्री देवेन्द्र नाथ शुक्ल ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्था की ओर से आभार व्यक्त किया। संगीत शिक्षक श्री दीपक कुमार, सिवान ने कार्यक्रम के मध्य एवं समापन के समय प्रेमचंद साहित्य पर आधारित गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया। कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यूट्यूब एवं फेसबुक पर इसका सीधा प्रसारण हो रहा था और देश-विदेश में अपने घरों में बैठे लोग प्रेमचंद के विचारों को सुन रहे थे और देख रहे थे। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में देश के विभिन्न राज्यों एवं शहरों के व्यक्तियों एवं संस्थाओं ने अपना सक्रिय योगदान दिया।