राज्य से लेकर केंद्र तक जिस तरह का राजनीतिक घटनाक्रम देखा जा रहा है, इसके मद्देनजर भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा,इसकी घोषणा सिर्फ एक औपचारिकता भर रह गई है. क्योंकि हालात और परिस्थितियां एनडीए के साथ है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में यूपीए की ओर से यशवंत सिन्हा है तो दूसरी तरफ एनडीए की ओर से उड़ीसा की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को खड़ा किया गया है.
गणित बताता है कि अगर विपक्ष बटा नहीं तो एनडीए का उम्मीदवार परास्त हो सकता है.पर क्या यह संभव है? अगर राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में एनडीए ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को मैदान में नहीं उतारा होता तथा उनकी जगह किसी और को उम्मीदवार बनाया जाता तो राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार की जीत की राह कठिन होती. परंतु यहां सवाल एक आदिवासी महिला का है. विपक्षी खेमे में कई पार्टियां दलित और आदिवासियों की राजनीति करती आई है. ऐसे में उनके लिए यह आसान नहीं होगा कि आदिवासी वोट का तिरस्कार करें.
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार तथा जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के भारत के अगले राष्ट्रपति बनने की दौड़ से बाहर होने के बाद यशवंत सिन्हा के नाम को विपक्षी खेमे के राजनीतिक दलों ने अंतिम रूप दिया था. दूसरी ओर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ कडा मुकाबला करने के लिए विपक्षी खेमे में दरार तब सामने आ गई जब कई क्षेत्रीय दल जैसे टीआरएस, बीजू जनता दल ,आम आदमी पार्टी, वाईएसआरसीपी आदि बैठक से दूर रहे. ये वे पार्टियां थी जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा 15 जून को बुलाई गई विपक्षी पार्टियों की बैठक में शामिल नहीं हुई थी. तभी यह लगने लगा था कि विपक्षी पार्टियों की फूट का लाभ एनडीए को मिलने वाला है.
लेकिन तभी एनडीए की ओर से आदिवासी महिला राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बीजू जनता दल का नैतिक समर्थन प्राप्त हो गया.इसके साथ ही आदिवासी महिला होने और उड़ीसा के राज्यपाल होने से झारखंड सरकार में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भला इस बात से कैसे इंकार कर सकते हैं कि एक आदिवासी महिला को समर्थन ना दिया जाए.
तो क्या यह समझा जाए कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की रणनीति फेल हो गई या भाजपा अपने मकसद में कामयाब हो गई. हालांकि अभी राष्ट्रपति चुनाव में थोड़ा विलंब है और जिस तरह का राजनीतिक घटनाक्रम देखा जा रहा है ऐसे में कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता. परंतु मौजूदा स्थिति एनडीए के पक्ष में जा रही है. मालूम हो कि 18 जुलाई को राष्ट्रपति का चुनाव होगा जबकि मतों की गिनती 21 जुलाई तक पूरी हो जाएगी और 25 जुलाई को नया राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण होगा.
आज एनडीए की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू अपना नामांकन दाखिल करने जा रही हैं.मजे की बात तो यह है कि उड़ीसा सरकार के दो वरिष्ठ मंत्री भी उनके साथ इस अवसर पर रहेंगे. इस बीच यशवंत सिन्हा का एक बयान सुर्खियों में है कि उन्हें रबड़ स्टांप राष्ट्रपति मंजूर नहीं है. उनका यह बयान काफी कुछ इशारा कर रहा है. जानकार मानते हैं कि विपक्षी खेमे में एकता का अभाव ही एनडीए को लाभ पहुंचा रहा है. विश्लेषकों ने यहां तक कहा है कि अगर विपक्षी खेमे में एकता नहीं रही तो 2024 का लोकसभा चुनाव भी यूपीए के हाथ से निकल सकता है. बहरहाल अगला राष्ट्रपति कौन होता है, इसकी औपचारिक घोषणा 21 जुलाई को होगी. अगर विपक्षी खेमे के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा हार जाते हैं तो ममता बनर्जी समेत पूरे विपक्ष को सबक लेने की जरूरत होगी कि विपक्षी एकता का फॉर्मूला क्या हो ताकि सभी विपक्षी पार्टियों का आपसी संतुलन और समन्वय बना रहे.