ऐसी महिलाएं, जो मातृत्व सुख के लिए तरस रही हैं, पर वे किसी भी तरह संतान को जन्म नहीं दे सकती, या तो वह अनाथ आश्रम से बच्चा गोद ले सकती हैं या फिर किराए की कोख के जरिए अपनी लालसा की पूर्ति कर सकती हैं. क्या है किराए की कोख, यह जानना जरूरी है.
वास्तव में यह एक ऐसी पद्धति है जिसमें कोई महिला संतान के इच्छुक किसी जोड़े के बच्चे को अपने गर्भ में पालती है और जन्म के बाद बच्चे को दंपति को सौंप देती है. दंपति के शुक्राणु और अंडाणु को प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है और जब यह एक भ्रूण के रूप में आ जाता है, तब इसे उस महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जो बच्चे को जन्म देती है. इसी को बोलचाल की भाषा में किराए की कोख नाम दिया गया है.
पहले किराए की कोख को कानूनी मान्यता नहीं मिली थी. ऐसे में दंपति संतान की लालसा के लिए अनाथ आश्रम से बच्चे गोद लेते थे. मगर अब किराए की कोख को कानूनी मान्यता मिल चुकी है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सरोगेसी अधिनियम 2021 को मंजूरी दे दी है. यह विधेयक राज्यसभा और लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है. लोकसभा ने 8 दिसंबर को पारित किया था, जबकि राज्यसभा ने 17 दिसंबर को पारित किया.
इस कानून की कुछ खास बातें और शर्तें भी हैं. इसके अनुसार व्यवसायिक रूप से सरोगेसी पर निषेध है. केवल परोपकार अथवा दान के रुप में ही इसे मान्यता मिली है. जो महिला ऐसे शिशु को जन्म देती है, उसे किसी भी तरह वित्तीय मुआवजा या लालच नहीं दिया जा सकता. सेरोगेट मदर को केवल चिकित्सा का खर्च और बीमा कवरेज ही मिलता है. इस कानून के अनुसार सरोगेसी की अनुमति तब दी जाती है,जब संतान के इच्छुक जोड़े को चिकित्सा आधार पर बांझ प्रमाणित किया जाता हो. यह पूरा कार्य परोपकार के दृष्टिकोण से हो और किसी भी तरह से इसमें व्यवसाय या लेनदेन की कोई बात नहीं आए. शर्तों के अनुसार बच्चों के बेचने, उनसे वेश्यावृत्ति कराने या किसी भी तरह के शोषण कार्यों में इस्तेमाल की बात नहीं आनी चाहिए.
हालांकि सरोगेसी कानून में जिन शर्तों का उल्लेख किया गया है, व्यवहारिक रूप में उसे अमलीजामा पहनाया जाना आसान नहीं है . क्योंकि विरले ही सेरोगेट मदर बगैर लालच के यह सब करने को तैयार होंगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरोगेसी कानून का सकारात्मक स्वरूप सामने आएगा और सरोगेसी कानून से समाज का भला होगा. सेरोगेट मदर और दंपति के बीच “लेन-देन”, ब्लैकमेल और असामाजिक कार्यों को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए. आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे कानून को उल्लेखित शर्तों के अनुसार दृढ़ता से पालन किया जाए ,तभी इसका लाभ समाज को मिलेगा.